यूनेस्को के अनुसार, दुनिया की 40% आबादी को अपनी मातृभाषा में शिक्षा हासिल करने का अवसर नहीं मिलता!

अन्तराष्ट्रीय मात्रभाषा दिवस की 25 वी वर्षगांठ पर युनेस्को ने कहा की दुनिया की 40% आबादी को अपनी मातृभाषा में शिक्षा हासिल करने का अवसर नही मिलता है। यानी दुनिया के 40% लोगों को उस भाषा में शिक्षा नही मिल पाती है, जिसे वे समझते है बोलते है।

यूनेस्को के अनुसार, दुनिया की 40% आबादी को अपनी मातृभाषा में शिक्षा हासिल करने का अवसर नहीं मिलता!


यह आकंडा छोटे देशों में और अधिक बढ़ जाता है। की उन्हे अपनी मातृभाषा में शिक्षा नही मिल पाती है। इन देशों में यह आंकड़ा 90% से अधिक भी रहता है। इससे लाखो लोग प्रभावित होते है, उनकी शिक्षा प्रभावित होती है। इस मंच पर टीम ने कहा की राष्ट्रो को बहुभाषा पर काम करना चाहिए। जिससे उन सभी को फायदा हो सकें।


कुछ देश यह समझते है की उनकी मातृभाषा में शिक्षा देना कैसे उनके उन लोगो के लिए सुविधाजनक होगा। जो केवल इस लिए शिक्षा नही ले पाते क्योंकि जिस भाषा में वह शिक्षा दी जा रही है वह उसे अच्छे से नही समझ पाते। इसलिए वह देश इस पर काम करते है ताकि सभी को शिक्षा उनकी मातृभाषा में मिल सके।


यह रिपोर्ट अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की 25 वी वर्षगांठ के अवसर पर पेश की गई जहां मातृभाषा पर शिक्षा को लेकर प्रयास किए जाते है की कैसे सभी को शिक्षा उनकी अपनी मातृभाषा में मिले, यह रिपोर्ट भी तब आई है, जब भारत मे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) चर्चा में है। जो की मातृभाषा में शिक्षा हो पर जोर देती है। जिसका कई राज्य सरकार विरोध कर रही है।


भाषा थोपना क्या सही है? 

यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जो अपनी मातृभाषा समझते है उन पर उस भाषा को थोपा जाता है जिसे वह समझते नही है। प्रवास का दायरा बढ़ रहा है और विभिन्न विधार्थी अलग अलग मूल से अलग अलग भाषाओं के साथ आ रहे है। जिससे प्रत्येक के लिए मातृभाषा में शिक्षा हासिल करना कठिन हो जाता है। और फिर बहुभाषा पर काम करने संसाधनो की कभी भी महसूस होती है। तो भी हर एक विधार्थी अपनी शिक्षा मातृभाषा में चाहता है, जिसे वह समझता है जिसे वह अपने बचपन से बोलता आया है। 

बहुभाषा के संदर्भ मे यह सुनिश्चित होना चाहिए की मातृ भाषा के साथ द्वितीय भाषा को भी रखा जाए। क्योंकि यह ज़रूरी नही है की आपकी मातृभाषा किसी और जगह भी बोली जाए। अगर वहाँ सम्पर्क करे तो कैसे? उसके लिए एक द्वितीयक भाषा का होना जरूरी सा हो जाता है। इसके लिए शुरूआत स्कूलों से ही संभव है जहाँ अध्यापक को इसकी जिम्मेदारी उठानी होगी। 


भारत के किए गए प्रयास


भारत सरकार ने भी इस पर काम किया है की सभी के लिए चाहे वह प्राथमिक शिक्षा हो या उच्च शिक्षा उसकी पढ़ाई मातृभाषा में ही करवाई जाए जिससे वे लोग जो अब तक की जाने वाली पढ़ाई की भाषा से डरते हैं या उसे समझ नहीं पाते हैं अपनी मातृभाषा में पढकर एक अच्छा मुकाम हासिल कर पाए। इसके लिए भारत सरकार ने विभिन्न शिक्षा के कोर्सेज को मातृभाषा में पढ़ाए जाने की सिफारिश की थी जिसमें कहा गया था कि यह उन जगहों तक शिक्षा को पहुंचाने का एक अच्छा तरीका है जहां लोग केवल इसलिए नहीं पढ़ पाए क्योंकि वह उनकी मातृभाषा में नहीं पड़ते हैं और देखा जाए तो यह एक अच्छा कदम भी है हम सभी को इसकी सराहना करनी चाहिए उम्मीद है हम इसे लेकर और जागरूक होंगे

अंग्रेजी का दबदबा


अंग्रेजी भारत की मातृभाषा नहीं है फिर भी ऐसे विभिन्न संस्थान है और ऐसे विभिन्न कोर्सेज हैं जो अंग्रेजी भाषा में संपन्न करवाए जाते हैं इससे कोई ज्यादा आपत्ति नहीं है लेकिन अगर यह पढ़ाईयां भी मातृभाषा में संपन्न हो तो शायद हर एक क्षेत्र का भारत के हर एक कोने का विद्यार्थी कुछ अच्छा कर सकता है वह अपनी मातृभाषा को जिसमें उसने अपनी प्राथमिक पढ़ाई पुरी की है जब अपने उच्च स्तर की पढ़ाई के लिए एक ऐसी भाषा की ओर जाता है जिससे उसने केवल एक विषय के रूप में पढ़ा था और अब उससे अपनी पढ़ाई ही उसे विषय के साथ करनी हो तो यह थोड़ा मुश्किल हो जाता है क्योंकि उसने अपनी सारी पढ़ाई मातृभाषा में की है तो हमें इस पर ध्यान देने की बहुत जरूरत है। 


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